tag:blogger.com,1999:blog-8831695468671190921.post6525359017942947768..comments2024-01-24T15:31:06.075+05:30Comments on पुस्तकायन: कुछ बातें पढने के बारे मेंपुस्तकायनhttp://www.blogger.com/profile/10952089254666584382noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-8831695468671190921.post-36257501070629273642015-09-19T08:54:00.294+05:302015-09-19T08:54:00.294+05:30आज ही मुझे आप के ब्लॉग की जानकारी हुई । आप की भूमि...आज ही मुझे आप के ब्लॉग की जानकारी हुई । आप की भूमिका पढ़कर बहुत प्रसन्नता हुई । पूरा ब्लॉग पढ़कर यथास्थान अपनी बात कहने की कोशिश करूंगा । banakatamishrahttps://www.blogger.com/profile/12793268581847762104noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8831695468671190921.post-43192120311866270672010-09-01T15:41:24.882+05:302010-09-01T15:41:24.882+05:30kya baat hia...bahut acha lagi yeh jaankaari :)
...kya baat hia...bahut acha lagi yeh jaankaari :)<br /><br />http://liberalflorence.blogspot.com/Dr. Tripat Mehtahttps://www.blogger.com/profile/06972787985997523606noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8831695468671190921.post-80586942998827559962010-09-01T14:26:07.187+05:302010-09-01T14:26:07.187+05:30पुस्तक पढ़ते समय यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि उसे नि...पुस्तक पढ़ते समय यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि उसे निरपेक्ष भाव से पढ़ा जाए।शिक्षामित्रhttps://www.blogger.com/profile/15212660335550760085noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8831695468671190921.post-41917588092129726962010-08-31T10:53:37.217+05:302010-08-31T10:53:37.217+05:30पढ़कर सोचने लगा कि पुस्तकें अगर न होतीं हमारी जिंदग...पढ़कर सोचने लगा कि पुस्तकें अगर न होतीं हमारी जिंदगी में तो सचमुच....सचमुच हमारा क्या बनता फिर।<br /><br />मुझे आपने कौन-सी तारीख दी थी, सर?गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8831695468671190921.post-51719797986441688742010-08-30T18:58:19.006+05:302010-08-30T18:58:19.006+05:30पुस्तकों से मेरा बचपन से ही गहरा नाता है। हर पुस्त...पुस्तकों से मेरा बचपन से ही गहरा नाता है। हर पुस्तक का अपना अलग व्यक्तित्व है और वह लेखक के वैचारिक व्यक्तित्व का प्रतिबिम्ब है। हर पुस्तक मुझे लगता है कि मेरे लिये ही लिखी गयी है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8831695468671190921.post-25615319127152252612010-08-29T16:26:06.148+05:302010-08-29T16:26:06.148+05:30आपने बिल्कुल सही कहा, "पढते हुए वह दिखाई देता...आपने बिल्कुल सही कहा, "पढते हुए वह दिखाई देता है जो हमें पहले नहीं दिखा था वह आवाजें सुनाई दे जाती हैं, जो हमारे आसपास होती हुई भी हमें पहले कभी नहीं सुनाई दी थीं।" पढ़ना सचमुच अपनी चेतना का अन्वेषण है.शेखर मल्लिकhttps://www.blogger.com/profile/07498224543457423461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8831695468671190921.post-10644082194943461912010-08-29T11:27:22.465+05:302010-08-29T11:27:22.465+05:30विविधता से परिपूर्ण अध्ययन हमारे आलोचनात्मक विवेक ...विविधता से परिपूर्ण अध्ययन हमारे आलोचनात्मक विवेक को विकसित करता है। हमारी तार्किकता को सटीक करता है।<br /><br />यही सटीक तार्किकता और आलोचनात्मक विवेक हमें सही चुनाव, पक्षधरता और प्रतिबद्धता के ताने-बाने से संपन्न करता है।<br /><br />इसके बगैर हुई मानने या बंधने की प्रक्रिया हमें सीमित करती है, आक्रामक करती है।<br /><br />अच्छी बात। शुक्रिया।समयhttp://main-samay-hoon.blogspot.comnoreply@blogger.com