Monday, August 9, 2010

फटीचर और ठाठदार दिखने के बीच चालीस पैसे का फर्क है

मकान (उपन्‍यास)
पहला संस्‍करण - 1976 
सातवीं आवृत्ति - 2004 

प्रकाशक 
राधाकृष्‍ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, 
जी - 17, जगतपुरी, दिल्‍ली - 110051
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यह वाक्‍य है, श्रीलाल शुक्‍ल के उपन्‍यास 'मकान' का ।  कुछ ऐसे लेखक होते हैं जिन्‍हें पढते समय आप कभी बोर नहीं होते ।  उनका अंदाज ही ऐसा होता है कि आप चाहे उनकी प्रारंभिक रचनाऍं पढें या लोकप्रिय होने लीजेन्‍ड बनने के बाद की, कभी बोरियत महसूस नहीं होती । श्रीलाल शुक्‍ल ऐसे ही लेखक हैं । इनकी मास्‍टर पीस 'रागदरबारी'  से तो आप परिचित होंगे ही ।


'मकान'  जो मैं एक निजी पुस्‍तकालय से लेकर पढ रहा हूँ, अभी खत्‍म नहीं किया है । लेकिन ब्‍लॉग बन जाने के बाद पहली पोस्‍ट करने अर्थात शुभारंभ करने की आतुरता ने मुझे यह पोस्‍ट लिखने को विवश कर दिया ।



मकान का नायक  सितार बजाने का शौकीन, कला प्रेमी नगर निगम में असिस्‍टेंट एकाउंटेंट है । प्रतिनियुक्ति काल पूरा करके वापस आने पर एक अदद मकान के लिए नगर निगम के उच्‍चाधिकारी के पास चक्‍कर लगाता है ।  ज्‍यादा कुछ कहने की अपेक्षा फिलहाल मैं पुस्‍तक से ही कुछ अंश उद्धृत करता हूँ ।

शुरुआत होती है इस वाक्‍य से - "इस नगर की सडकें जितनी गंदी हैं, नगर-निगम का दफ्तर उतना ही शानदार है । "
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पृ; 10.
"जीवन की यह एक ट्रैजेडी है कि हम जिनको नहीं देखना चाहते, उन्‍हीं को बार-बार देखना पडता है और जिन्‍हें हम बहुत चाहते हैं, उन्‍हें देखने को तरसते रह जाते हैं।"

" फटीचर और ठाठदार दिखने के बीच चालीस पैसे का फर्क है ! तीस पैसे खर्च करके आज सवेरे मैंने पतलून और बुश्‍शर्ट पर इस्‍त्री करायी थी और दस पैसे की  जूतों पर पालिश हुई थी ।.......

चालीस पैसे में पायी गई स्‍मार्टनेस खत्‍म होने के पहले ही मुझे अफसर की स्‍मार्टनेस का मुकाबला करने पहुँच जाना चाहिए । "
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पृ . 68
"पुराने अनुभव रेडीमेड गारमेण्‍ट की तरह सचमुच ही कई बार हमें नंगा होने से बचाते हैं ।....

पृ  69
"पत्र से, छोटे-मोटे शारीरिक कष्‍टों के विवरण के बाद, स्‍पष्‍ट होता था कि बीमारी ने उसे छोड दिया है पर उसी ने बीमार हो चुकने के गौरव को अभी नहीं छोडा है ।

रोगों की हैसियत एक जालिम मर्द जैसी है जिसकी मार खाकर भी पिटी हुई पत्‍नी उसके न रहने पर बडे लगाव से उसकी याद करती है । "
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तो लीजिए मित्रों शुभारंभ तो हो गया .... पढते वक्‍त एक पेंसिल साथ में रखी जाए तो इस काम के लिए काफी आसानी होती है ।

19 comments:

  1. एक सुघढ़ प्रयास !
    इस सँकलन का नाम पुस्तकायन उचित रहेगा, क्या ?
    नहीं, कोई बाध्यता नहीं है.. सहसा मन में आया सो सद्स्यों के सम्मुख़ रख दिया ।
    असीम शुभकामनायें !

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  2. @डा० अमर कुमार,
    बहुत बहुत शुक्रिया । बढिया सुझाव दिया आपने । नाम छोटा और अच्‍छा है। इसलिए अब यह 'पुस्‍तकायन' है ।

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  3. आपका का उद्देश्य अच्छा है. इसे और प्रगति पर लायेंगे, आशा है.

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  4. एक बेहतरीन शुरूआत...और निमंत्रण का शुक्रिया। डा० अमर साब को भी यहाँ देखकर खुश हूं।

    श्रीलाल जी की ये किताब अपनी भी अलमारी में है।

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  5. आप सभी का टिप्‍पणी करने और ब्‍लॉग ज्‍वाइन करने के लिए धन्‍यवाद । खासतौर पर डॉ. साहब की उपस्थिति उत्‍साहवर्धक है । शीर्षक सुझाकर उन्‍होंने ब्‍लॉग को संवार दिया है ।

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  6. नमस्कार !
    आपका ब्लॉग देखा. बहुत बढ़िया शुरुआत है. यह शोध और आलोचना में भी बहुत मदद करेगा.

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  7. आपका का उद्देश्य अच्छा है

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  8. एक बेहतरीन शुरूआत...और निमंत्रण का शुक्रिया। डा० अमर साब को भी यहाँ देखकर खुश हूं।

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  9. एक बेहतरीन शुरूआत!

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  10. बधाई...आपके प्रशंसनीय प्रयास के सफल होने की कामना के साथ

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  11. वाह पुस्तकायन का स्वागत है ......अरे ये बात मैं खुद को ही कह रहा हूं । बेहद ही प्रशंसनीय कदम है ....बहुत बहुत शुभकामनाएं

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  12. swagat-swagat aur swagat, aise itne acche blog ka swagat karte hue atyant khushi hi ho rahi hai.

    aise blog aur bhi aane chahhiye is blogjagat mein.

    shubhkamnayein.....

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  13. shubhkaamnaye aapko.......

    Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....

    A Silent Silence : Zindgi Se Mat Jhagad..

    Banned Area News : Court grants interim relief to MSC Chitra captain

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  14. Get your book published.. become an author..let the world know of your creativity or else get your own blog book!


    http://www.hummingwords.in/

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  15. बधाई स्वीकारें अच्छा लगा ये प्रयास

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  16. जबरदस्त ब्लॉग है.. पैसा वसूल
    हम फोलो कर रहे है ब्लॉग को ख्याल रखियेगा.. :)

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