Saturday, February 12, 2011

बोधि पुस्‍तक पर्व यानी किताबों का खजाना : राजेश उत्‍साही


फरवरी के आरंभ में जयपुर जाना हुआ। यात्रा इस मायने में  यादगार रही कि वहां किताबों का एक खजाना हाथ लगा। खजाना है दस किताबों का एक सेट। सेट का मूल्‍य इतना कम है कि विश्‍वास नहीं होता है कि आज की तारीख में भी यह संभव है। पर इसे संभव बनाया है जयपुर के बोधि प्रकाशन के मायामृग जी ने। मायामृग स्‍वयं भी कवि हैं।

इस सेट को बोधि पुस्‍तक पर्व नाम दिया है। पहले सेट में चार कविता संग्रह हैं,तीन कहानी संग्रह और तीन किताबें क्रमश संस्‍मरण,डायरी और लेखों की हैं। कवि हैं नंद चतुर्वेदी,विजेन्‍द्र,चंद्रकांत देवताले और हेमंत शेष। सभी नई कविता के जाने-माने और स्‍थापित  हस्‍ताक्षर हैं। कहानीकार हैं महीपसिंह, प्रमोद कुमार शर्मा और सुरेन्‍द्र सुन्‍दरम्। महीपसिंह भी स्‍थापित कहानीकार हैं। शेष दो कहानीकार राजस्‍थान के सुपरिचित हस्‍ताक्षर   हैं।


राजस्‍थान के हेतु भारद्वाज अपने संस्‍मरण लेकर हाजिर हैं। कहानीकार नासिरा शर्मा जिनका नाम परिचय का मोहताज नहीं है अपने लेखों के संग्रह के साथ मौजूद हैं। वहीं राजस्‍थान के कहानीकार सत्‍यनारायण की डायरी इस सेट में हैं।

कहानी और कविता के सेटों में संकलित रचनाएं लेखकों की एक तरह से प्रतिनिधि रचनाएं हैं। हम उन्‍हें पहले भी अलग-अलग जगह पढ़ चुके हैं। महत्‍वपूर्ण बात यह है कि यह सेट मात्र सौ रूपए में उपलब्‍ध है। प्रत्‍येक किताब का दाम केवल दस रूपए है। हर किताब में कवर को मिलाकर 100 पृष्‍ठ हैं। हर किताब का कवर बहुरंगी और आकर्षक है। किताब के अंदर का कागज नेचुरल शेड। छपाई उत्‍तम दर्जे की है। यकीन मानिए अब तक पांच हजार सेट बिक चुके हैं। यदि कोई व्‍यावसायिक प्रकाशन संस्‍थान इस सेट को छापता तो एक-एक किताब का दाम सौ रूपए होता। लगातार महंगी होती किताबों के बीच लगभग लागत मूल्‍य पर किताबें उपलब्‍ध करवाने के लिए बोधि प्रकाशन के कर्ता-धर्ता इसके लिए बधाई के पात्र हैं। इन किताबों की चर्चा यहां इसीलिए की जा रही है कि बोधि प्रकाशन के इस अभियान की सराहना की जाए। क्षमा करें,यह विज्ञापन नहीं है। सेट में शामिल रचनाकार भी अपरिचित नहीं हैं। बधाई के हकदार वे भी हैं कि उन्‍होंने अपनी रचनाओं को प्रकाशित करने की अनुमति दी। 

अगला सेट महिला रचनाकारों पर केन्द्रित है। योजना महिला दिवस पर प्रकाशित करने की थी। लेकिन मायामृग कहते हैं अपरिहार्य कारणों से यह संभव नहीं हो पा रहा है।

जो पाठक इस सेट को प्राप्‍त करना चाहे वे इस पते पर संपर्क कर सकते हैं-बोधि प्रकाशन,एफ-77,सेक्‍टर 9,रोड नम्‍बर 11,करतारपुरा इंडस्ट्रियल एरिया,बाईस गोदाम,जयपुर -302006 । फोन: 0141-2503989, 98290 18087

इस सेट के कविता संग्रहों से दो प्रेम कविताएं आपके लिए प्रस्‍तुत हैं।

प्‍यार का क्‍या करें कविगण: हेमंत शेष

भारत में प्रेम एक घटिया शब्‍द बनाया जा चुका है। और रहेगा।
इसे ही मुंबई का सिनेमा कहता है ‘प्‍यार’
रही सही कसर सस्‍ते उपन्‍यास-सम्राटों ने पूरी कर दी है।
स्थिति यह है कि अब प्रेम करने वाले भी प्रेमी कहलाने से डरते हैं।
पर विडम्‍बना देखिए
गाहे-बगाहे हमें भी
पूरी गंभीरता से करना पड़ता है
इसी शब्‍द का इस्‍तेमाल।
और तब हम भीतर से प्रेम को लेकर उतने चितिंत नहीं होते
जितने होते हैं इसके दु:खद पर्यायवाची से:
कुछ खास-खास मौकों पर
हूबहू प्रेमी की तरह दिखते हुए ‘प्‍यार’ शब्‍द से डरते ,
भीतर से पर
महज
कवि रहते ।  
(कविता संग्रह प्रपंच-सार-सुबोधिनी से साभार।)

प्रेम के बारे में: नंद चतुर्वेदी

हवा से मैंने प्रेम के बारे में पूछा
वह उदास वृझों के पास चली गई

सूरज से पूछा
वह निश्चिंत चट्टानों पर सोया रहा

चन्‍द्रमा से मैंने पूछा प्रेम के बारे में
वह इंतजार करता रहा
लहरों और लौटती हुई पूर्णिमा का

पृथ्‍वी ही बची थी
प्रेम के बारे में बताने के लिए
जहां मृत्‍यु थी और जिन्‍दगी

सन्‍नाटा था और संगीत
लड़कियां थीं और लड़के
हजारों बार वे मिले थे और कभी नहीं

समुद्र था और तैरते हुए जहाज
एकान्‍त था और सभाएं
प्रेम के दिन थे अनंत
और एक दिन था

यहां एक शहर था सुनसान
और प्रतीक्षा थी
यहां जो रह रहे थे कहीं चले गए थे
थके और बोझा ढोते
जो थक गए थे लौट आए थे

यहां राख थी और लाल कनेर
प्रेम था और हाहाकार
(कवि के संग्रह’ जहां एक उजाले की रेखा खिंची है’ से साभार।)

17 comments:

  1. उपयोगी और रोचक रचनासंग्रह लग रहा है।

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया,इस जानकारी का
    कविताएँ भी बेहतरीन हैं.

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  3. कवितायें भी बेहद उम्दा और दिल को छूने वाली हैं और संग्रह के बारे मे जानकर तो बहुत अच्छा लगा कि अभी भी निस्वार्थ भाव से काम करने वाले बहुत से लोग हैं……………आभार …………बहुत बढिया जानकारी दी।

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  4. aisi kranti aani chahiye, jisase ki pustake aam aadami tak pahunch sake.wakayi sarahaniy kary hai. meri badhai.

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  5. bahut hi rochal rachna ka sangam he
    thanks

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  6. पुस्‍तक प्रेमियों के लिए उपयोगी जानकारी। पुस्‍तकायन में इस तरह के प्रयासों का स्‍वागत है।

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  7. बहुत ही खूबसूरत और मार्क करके रखने लायक पोस्ट । शुभकामनाएं

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  8. साहित्यिक पुस्‍तकों के पाठक तो फिर भी कुछ हैं शायद, कुछ खरीददार भी (लेकिन पाठक नहीं), खरीददार-पाठक कितने होंगे... फिर भी प्रकाशक के लिए साधुवाद और शुभकामनाएं.

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  9. .
    निःसँदेह उनका यह भगीरथ प्रयास वन्दनीय है ।
    लगभग 5-6 महीने पहले ही मैं श्री मायामृग जी से सम्पर्क का प्रयास कर चुका हूँ ।
    किन्तु उनका कोई प्रत्युत्तर या पत्र-प्राप्ति स्वीकृति जैसा कुछ अभी तक नहीं आया ।
    सँभवतः अतिव्यस्तता के कार्ण ही ऎसा हुआ हो ।

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  10. बहुत ही सराहनीय प्रयास है.....................एक नन अलख जगाई है आपने।


    डॉ. दिव्या श्रीवास्तव ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर किया पौधारोपण
    डॉ. दिव्या श्रीवास्तव जी ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर तुलसी एवं गुलाब का रोपण किया है। उनका यह महत्त्वपूर्ण योगदान उनके प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता, जागरूकता एवं समर्पण को दर्शाता है। वे एक सक्रिय ब्लॉग लेखिका, एक डॉक्टर, के साथ- साथ प्रकृति-संरक्षण के पुनीत कार्य के प्रति भी समर्पित हैं।
    “वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर” एवं पूरे ब्लॉग परिवार की ओर से दिव्या जी एवं समीर जीको स्वाभिमान, सुख, शान्ति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के पञ्चामृत से पूरित मधुर एवं प्रेममय वैवाहिक जीवन के लिये हार्दिक शुभकामनायें।

    आप भी इस पावन कार्य में अपना सहयोग दें।
    http://vriksharopan.blogspot.com/2011/02/blog-post.html

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  11. चकित करने वाली जानकारी। सराहनीय प्रयास।

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  12. bahut उपयोगी जानकारी दी आपने...

    सत्य है, आज के समय में ये मूल्य अविश्वसनीय लगते हैं..

    प्रकाशन ka प्रयास सराहनीय है...

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  13. उपयोगी और रोचक रचनासंग्रह लग रहा है।

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  14. har sahity premi ko is suvidha ke liye maya mrigy ji ko kotishh dhnywaad dena hi chahiye .
    kya is prkashn ka koi e mail id mil skta hai ?

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  15. मायामृग जी का पता है -
    बोधि प्रकाशन
    एफ-77, करतारपुरा औद्योगिक क्षेत्र,
    बाईस गोदाम,
    जयपुर
    फोन- 0141-2503989, 098290 18087
    ई-मेल- mayamrig@gmail.com
    वैसे 25 रुपये अतिरिक्त भेजकर पुस्तकों के दोनों सैट आप बुक-पोस्ट से भारत में कहीं भी मंगाए जा सकते हैं.
    सादर...
    डॉ. अमर कुमार जी, आप उनसे पुनः संपर्क साधे वे आपसे संवाद अवश्य करेंगे। वे आदमियत के धनी है...

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