Monday, October 18, 2010

लस्‍ट फॉर लाइफ


महान चित्रकार वॉन गॉग के जीवन पर आधारित विश्‍वप्रसिद्ध उपन्‍यास 

वॉन गॉग के अंतिम चित्र से बातचीत

एक पुराने परिचित चेहरे पर 
न टूटने की पुरानी चाह थी
आंखे बेधक तनी हुई नाक
छिपने की कोशिश करता था कटा हुआ कान
दूसरा कान सुनता था दुनिया की बेरहमी को 
व्‍यापार की दुनिया में वह आदमी प्‍यार का इंतजार करता था 

मैंने जंगल की आग जैसी उसकी दाढी को छुआ
उसे थोडा-सा क्‍या किया नहीं जा सकता था काला
ऑखें कुछ कोमल कुछ तरल
तनी हुई एक हरी नस जरा सा हिली जैसे कहती हो तुम 
हम वहां चलकर नही जा सकते 
वहां आंखों को चौंधियाता हुआ यथार्थ है और अंधेरी हवा है 
जनम लेते हैं सच आत्‍मया अपने कपडे उतारती है
और हम गिरते हैं वहीं बेदम 
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'लस्‍ट फॉर लाइफ' एक ऐसे चित्रकार की उपन्‍यासात्‍मक जीवनी है,  जिसका नाम आज इतिहास में दर्ज है। जो माडर्न आर्ट को स्‍थापित करने वाले चित्रकारों में से प्रमुख है। जिसका नाम लिए बिना आ‍धुनिक चित्र कला की बात नहीं की जा सकती। 


लेकिन इन सब से अद्भुत रहा उसका जीवन। समकालीन समाज और चित्रकला द्वारा उसके चित्रों को लगातार अस्‍वीकृत किए जाने के बावजूद वह लगातार चित्र बनाता रहा। जैसे वह चित्र बनाने के लिए ही जीवित था। यह बात सच भी साबित हुई। अंतत: उसे जब लगा कि उसने अपना श्रेष्‍ठतम दे दिया है और अब उसके अन्‍दर वह 'आग' नहीं रह गई जो उसके चित्रों में जान डालती थी। वह अब और चित्र नहीं बना सकता। उसने अपना जीवन समाप्‍त कर लिया। 

विन्‍सेंट वान गॉग के बारे में लिखते समय उसके भाई थियो का जिक्र किए बिना नहीं रहा जा सकता। लस्‍ट फार लाइफ पढकर तो यही लगता है कि यदि थियो जैसा भाई न होता तो विन्‍सेंट वान गॉग भी महान चित्रकार के रूप में दुनिया में जाना न जाता। यह बात उपन्‍यास लस्‍ट फॉर लाइफ पढने के बाद आपको जरा भी अतिश्‍योक्ति न लगेगी। 

क्‍योंकि भाई थियो ही वह शख्‍स था जो विन्‍सेंट को जीवन भर उसके उन चित्रों के बदले उसे बंधी बंधाई तनख्‍वाह देता रहा जिसे जीवन भर थियो न बेंच सका ।  क्‍योंकि थियो ही वह शख्‍स था जो जानता था कि विंसेन्‍ट एक दिन महान चित्रकार के रूप में पहचाना जाएगा । विंसेन्‍ट वॉन गॉग के समकालीन  ऐसे केवल दो-तीन व्‍यक्ति ही थे जो विन्‍सेंट की प्रतिभा को पहचानते थे। 

ऐसा चित्रकार जिसके जीवित रहते उसकी कला को मान्‍यता नहीं मिल सकी। जो जीवन भर तरसता रहा  जीवन के लिए, प्‍यार और परिवार के लिए। जिसने वही चित्रिति किया जो उसने जिया। उसके चित्रों के पात्र थे मजदूर,‍ किसान, खेत और प्रकृति। वान गॉग  का समय चित्रकला में एक ऐसे दौर की शुरुआत थी जिसमें नई पीढी जीवन को वैसा ही चित्रित करना चाहती थी जैसा वह है। ये चित्रकार जीवन को उसके सभी रंगों विसंगतियों, कुरुपताओं, क्रूरताओं अनैतिकता इत्‍यादि को इसकी समग्रता में चित्रि‍त करना चाहते थे। ये सभी गरीब, भूखे और स्‍थापित मान्‍यताओं के द्वारा अमान्‍य थे । चित्रकला में सिर्फ आभिजात्‍य सौंदर्य दिखाना या प्रकृति के रमणीय दृश्‍य दिखाने वाले समय का अंत होने वाला था। 

वह जीवन भर लडता रहा भूख संघर्ष उपेक्षा से । उसकी खोज जीवन की खोज थी। उसकी वासना जीवन की वासना थी। अंतत: उसकी खोज स्‍वयं की खोज थी। लस्‍ट फार लाइफ पढने से पहले हमने वान गॉग को एक ऐसे सनकी चित्रकार के रूप में सुन रखा था जिसने अपनी प्रेमिका वेश्‍या को अपना कान काट कर भेंट कर दिया था। उसका समकालीन समाज भी उसे एक सनकी पागल के रूप में ही जानता था ।

पुस्‍तक की भूमिका में अनुवादक की तरफ से लिखा गया है :

"अगर देखा जाए तो अपनी समग्रता में वॉन गॉग का जीवन उसकी किसी भी पेंटिंग जैसा ही दिखता है, जिसमें स्‍थापित मान्‍यताओं के खिलाफ विरोधाभासों का एक अजीब आकर्षक और चौंका देने वाला मिश्रण जैसा कुछ है। उसके जीवन में अगर दुख्‍ा था तो उतनी ही तीव्र उल्‍लास भी था जो सभी तरह की विषमताओं का सामना करने के बाद पनपा था, उसमें अगर उपेक्षा की नितांत निजी पीडा थी तो उतनी ही विशाल सहृदयता भी जो दूसरों की पीडा को भी अपनाने की इच्‍छा जगाती है। 

इन सब बातों के अलावा एक और खास बात जो वॉन गॉग के जीवन में थी वह थी जीवन के प्रति उसकी ईमानदारी और उसकी आस्‍था। 

वॉन गॉग के ऐसे ही अद्भुत जीवन को आधार बना कर लिखे गए इरविंग स्‍टोन के उपन्‍यास लस्‍ट फॉर लाइफ को पढना अगर हर बार इस अबूझ शख्‍सियत के चरित्र की नई परतों को खालने का एहसास देता है तो यह स्‍टोन के निष्‍पक्ष और व्‍यापक शोध का नतीजा है। यह कहा जा सकता है कि खुद वॉन गॉग और कुछ-कुछ‍ थियो के बाद अगर उसके जीवन को कोई पूरी सूपूर्णता में समझ सका तो वह बेशक  इरविंग स्‍टोन ही थे। इस किताब में वॉन से जुडा सब कुछ है - उसका जीवन, उसका प्रेम, उसकी मित्रता, उसकी निराशा, उसकी उम्‍मीद, उसकी व्‍यग्रता, उसका धैर्य उसकी कला और कला के प्रति उसकी अपनी मान्‍यता, अपनी समझ और हिंदीभाषियों को इस सब से उनकी ही भाषा में परिचित कराने की उत्‍कंठा ही इस अनुवाद के मूल में है। 

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प्रस्‍तुत हैं पुस्‍तक में से कुछ पंक्तियॉं :

जब वह कमरे में पहुँचा उसने रेनां की किताब निकाली और वह पन्‍ना खोला जिसमें उसने निशान लगा रखा था, "दुनिया में काम करने के लिए" उसने पढना शुरू किया, "आदमी को अपने ही भीतर मरना पडता है। आदमी इस दुनिया में सिर्फ खुश होने के लिए नहीं आया है। वह ऐसे ही ईमानदार बनने को भी नहीं आया है। वह पूरी मानवता के लिए महान चीजें बनाने को आया है। वह उदारता प्राप्‍त करने आया है जिसमें तकरीबन हर आदमी का अस्तित्‍व घिसटता रहता है      ...."        
                                                                                                                                  POTATO EATERS 

"विन्‍सेंट आप किसी भी चीज के बारे में हर समय सही नहीं हो सकते," मेन्‍डेस ने कहा, "आप केवल साहस और शक्ति जुटा सकते हैं वह करने के लिए जो आप सही समझते हैं। यह गलत भी हो सकता है। लेकिन आप उसे कर चुके होंगे और यही महव्‍वपूर्ण है। हमें अपनी बुद्धि के श्रेष्‍ठ चुनाव के आधार पर काम करते हुए उसके अंतिम मूल्‍य का निर्णय ईश्‍वर पर छोड दिया जाना चाहिए।"

"मॉव कभी खत्‍म न होने वाली ऊर्जा से भरपूर आदमी था, वह चित्र बनाता रहता था, जब वह थक जाता तो वह और चित्र बनाता, और फिर थक जाने के बाद वह और चित्र बनाता जाता था। जब तक वह तरोताजा होता वह फिर से चित्र बनाने के लिए तैयार होता था।"

"प्रेम जीवन का नमक था -- जीवन में स्‍वाद लाने के लिए हर एक को उसकी जरूरत थी"

"क्रिस्‍टीन ने उसके साथ जो किया था वह उसका आभारी था। जीवन में प्रेम की कमी से उसे अथाह दर्द मिलता था पर उसे कोई नुकसान नहीं होता ; सेक्‍स की कमी उसकी कला स्‍त्रोत को सुखा सकती थी और उसे मार सकती थी।"

"सेक्‍स चिकनाई पैदा करता है,"  लय के साथ काम करते हुए वह अपने आप से बडबडाया, "पता नहीं पापा मिशेले ने इस बात का जिक्र क्‍यों नहीं किया!"

"विन्‍सेंट को चित्र में एक गहरी, सांसारिकता दार्शनिकता नजर आयी। वह उससे कह रही थी, "बिना शिकायत किये कष्‍ट झेलना सीखो ; यही एक असल बात है -- वह विशद विज्ञान, सीखने को एक पाठ -- जो जीवन की समस्‍याओं का समाधान उपलब्‍ध कराती है। "

"जिंदगी भी मारगॉट , एक अनंत खाली और हतोत्‍साहित कर देने वाली निगाह से हमें घूरती रहती है, जैसे यह कैनवस करता है" 
"लेकिन ऊर्जा और विश्‍वास से भरा आदमी उस खालीपन से भयभीत नहीं ; वह उठ खडा होता है, काम करता है, बनाता है, रचना करता है, और अंत में कैनवस खाली नहीं रहता बल्कि जीवन के पैटर्न से भरपूर हो जाता "

"मैं कभी यातना को छिपाने का प्रयास नहीं करता, क्‍योंकि अक्‍सर यातना ही कलाकार की रचना को सबसे मुखर बनाती "

"आदमी प्रकृति का पीछा करने की हताश मशक्‍कत से शुरु करता है,और सब कुछ गलत होता जाता ; अंतत: आदमी अपने रंग खेज लेता है और सहमत होकर प्रकृति उसके पीछे आने लगती। "

"हर आदमी के जीवन में ऐसा क्षण आता ही है, जिसमें दर्द और यातना को पुराने लबादे की तरह फेंक देना होता है।" 

देलाक्रोआ ने लिखा था - "मैंने पेंटिंग को तब खोजा, जब न मेरे पास दांत बचे थे न सांस।" 
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प्रकाशक : संवाद  प्रकाशन,
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                मेरठ - 250 004 (उ.प्र.)
                सार्वाधिकार : संवाद प्रकाशन

2 comments:

  1. इस पुस्तक को पढने की रुचि जगा दी आपने।

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  2. सुन्दर जानकारी के लिए बधाई !

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