Saturday, November 6, 2010

अजीजन मस्तानी

आशा श्रीवास्तव जी द्वारा रचित '' अजीजन मस्तानी ''एक ऐसा उपन्यास है जिसकी पकड़ में जबर्दस्त शिद्द्त है | उपन्यास पढना शुरू करने के बाद ऐसा महसूस हो रहा था मानो सब कुछ आँखों के सामने घटित हो रहा हो | जब घटनाएँ सच्ची हों ,पात्र सच्चे हों तब काल्पनिक कुछ विशेष रह ही नही जाता है | यहाँ आकर सारा दारोमदार शिल्प पर आ टिकता है | कसा कथानक ,परिस्थिति के अनुरूप चुने हुए शब्द ,  गठा शिल्प , दिल और दिमाग पर हावी होने वाले घटनाक्रम और उसकी झकझोर देने वाली प्रस्तुति , आशा जी की लेखनी से निःसंदेह एक कालजयी उपन्यास का सृजन हुआ है |
ये उपन्यास एक विस्तृत फलक पर रचा गया है | देश भक्ति के लिए अपने प्राणों की परवाह ना करने वाली एक तवायफ अजीजन का चरित्र वास्तव में  काबिले तारीफ  है | एक औरत होने के नाते अजीजन के चरित्र  ने मुझे बेहद प्रभावित किया है | उसके दिल से जो आवाज निकलती है तो ऐसा लगता है मानो ------------
एक लोटा पानी और उसमे
समन्दर की चाहत
ये कैसा दिल है ,
जिन्दगी के चंद लम्हे
मुट्ठी में आसमाँ
ये कैसी चाहत है ,
छोटा सा गुलदस्ता
ढेर सारे सपने
ये क्या हम है ?


औरत का चाहना हर  किसी के लिए नही होता है | अजीजन बेशक एक  तवायफ है पर उसके भीतर एक औरत भी छुपी है और उसी औरत का जज्बा, शमशुद्दीन के लिए, चाँद को हथेलियों में छुपाने जैसा है | रिश्तों के अधूरेपन को वो अपने प्रेम की चाशनी में डुबोती है मानो ------------------
जिन्दगी की उदास राहों में
अचानक मिल जाना तुम्हारा
सख्त   हथेलियों   पे  जैसे
शबनम का ठहर सा जाना
खुश्क गले में अटकते अटकते
गीला   सा   कुछ  तिर  जाना
कड़क    धूप   में     जैसे
बादल  का  छा सा जाना
बैठक में मुजरा और पीछे के कमरे में आजादी के लिए हो रही मन्त्रणा ! इतना विरोधाभास और इसे एक सूत्र में पिरोती अजीजन मस्तानी हर तबके से सलाम पाने की हकदार है | आशा जी ने जहाँ एक तरफ अजीजन  के  पेशे की पीड़ा को जामा पहनाया है वही दूसरी तरफ उस पीड़ा में देश के लिए मर मिटने की भावना का बहुत ही प्रभावशाली ताना बाना बुना है | सच , इसका कोई सानी नही है  |
 वह कहती है '' पाने वाले को कुछ खोना भी पड़ता है , अलविदा ! ''इस खोये और पाए जाने के ब्योरो से परे आत्ममुग्धा की तरह जीते जीते कब वो आजादी की मुग्धा बन गई , इतिहास में छिटके हुए अवशेष इसके गवाह  है | भारतीय इतिहास में मील का पत्थर बन गई अजीजन मस्तानी को पाठकों तक पहुचाने के लिए आशा जी को बहुत बहुत धन्यवाद |

23 comments:

  1. रोचक पुस्तक, सुन्दर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  2. सुंदर प्रस्तुति। पुस्तक की समीक्षा इसे पढने की रुचि जगा गई।

    ReplyDelete
  3. अजीजन मस्‍तानी के बारे में और जानकारी खोजने की दृष्टि से मैं नेट पर सर्च कर रहा तो मैंने जाना कि उन पर एक लघु फिल्‍म भी बनी है। इसे कासिद ब्‍लाग वाले पंकज शुक्‍ल जी ने बनाया है। पंकज शुक्‍ल पत्रकार हैं।
    राजवंत जी से भी अनुरोध है कि उपन्‍यास तथा आशा जी के बारे में थोड़ी और जानकारी यह हम लोगों के साथ बांटें।

    ReplyDelete
  4. अच्छी समीक्षा... सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete


  5. राजेश उत्साही से सहमत,
    राजवन्त जी का चुनाव निःसँदेह बेहतर है ।
    इस कृति के प्रकाशक और उपलब्धता पर अधिक जानकारी की आवश्यकता है ।

    ReplyDelete
  6. समीक्षा पढकर तो किताब पढने की इच्छा बलवती हो गयी।

    ReplyDelete
  7. पुस्तक की समीक्षा अच्छी लगी।...धन्यवाद।

    ReplyDelete
  8. पुस्तक वाकई में बहुत सुन्दर होगी..लगता है गागर में सागर सी होगी.. समीक्षा काफी जानदार .. पुस्तक जरूर पढ़ी जाये... शुभकामना..

    ReplyDelete
  9. sundar sameeksha!!!
    looking forward to read the book sometime!!!
    parichay hetu aabhar!

    ReplyDelete
  10. pustkayan ke aadrneey pathko
    saddr namaskar
    kisi pustak ki smiksha ke mere phle pryaas ko aap sbhi ne sraha , vishwaas maniye bhut khushi hui .aap sbhi kahriday se dhanywaad .
    asha shrivastv ji ne apni shiksha allahabad se puri ki hai . samsamyik vishyon pr inki lekhni abadh roop se chli hai .inhe prgya sahity , mhadevi smman ,sarsvat smman , sahity shiromni smman se smmanit kiya gya hai . inke kai kahani sangrh, kai upnyas prkashit huye hai . bal sahity pr bhi inhone bhut likha hai .
    ajijan mstani upanyas ' kitab mahal ' allahabad se prkashit hai . isme 178 prishth hai .
    asha ji ka address evm mo. no is prkar hai ---
    mrs. asha shrivastv
    shree umesh chandr ji
    54 a . p. sen road
    lucknow
    mo 9956951904
    o5222635839
    punhshch dhanywaad .

    ReplyDelete
  11. सुंदर प्रस्तुति. अजीजन मस्तानी जी से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

    ReplyDelete
  12. बहुत अच्छी समीक्षा ....कभी अवसर मिला तो यह पुस्तक ज़रूर पढूंगी

    ReplyDelete
  13. धन्यवाद राज ! आपने एक वीरांगना के चरित्र को ब्लॉग के पाठकों से रूबरू कराया ! वास्तव में आशाजी ने इनके जीवन के सभी पहलू को चित्र सहित उभारा है ,जो वीरता का संदेश देता है !आपको बधाई

    ReplyDelete
  14. Apki samiksha bahut achhi lagi.Dil karata hai ki us pustak ko jald se jald padh dalun. Samiksha ka andaj kabile tarif hai.

    ReplyDelete
  15. आपकी समीक्षा ने पुस्तक के भाव-चित्र को बड़ी ही संजीदगी से बखूबी उभारा है ! पाठक समीक्षा पढ़ने के बाद स्वयं को पुस्तक पढ़ने से रोक नहीं पायेगा!
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

    ReplyDelete
  16. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...शुभकामनाएं..

    ReplyDelete
  17. aap sbhi ka sneh pakr bhut achchha mhsoos kr rhi hu . bhut bhut dhnyvaad .mera blog umeed nam se hai . samay nikal kr vha bhi aaye our mera marg nirdeshn kre . aabhar shit .

    ReplyDelete
  18. मन अति उत्सुक हो गया इसे पढने को....

    आभार.

    ReplyDelete
  19. इस महत्वपूर्ण उपन्यास के प्रकाशन पर लेखिका आशाजी को और पुस्तक के बारे में सुंदर समीक्षात्मक आलेख के लिए संजय जी आपको बहुत -बहुत बधाई .

    ReplyDelete

Popular Posts