आशा श्रीवास्तव जी द्वारा रचित '' अजीजन मस्तानी ''एक ऐसा उपन्यास है जिसकी पकड़ में जबर्दस्त शिद्द्त है | उपन्यास पढना शुरू करने के बाद ऐसा महसूस हो रहा था मानो सब कुछ आँखों के सामने घटित हो रहा हो | जब घटनाएँ सच्ची हों ,पात्र सच्चे हों तब काल्पनिक कुछ विशेष रह ही नही जाता है | यहाँ आकर सारा दारोमदार शिल्प पर आ टिकता है | कसा कथानक ,परिस्थिति के अनुरूप चुने हुए शब्द , गठा शिल्प , दिल और दिमाग पर हावी होने वाले घटनाक्रम और उसकी झकझोर देने वाली प्रस्तुति , आशा जी की लेखनी से निःसंदेह एक कालजयी उपन्यास का सृजन हुआ है |
ये उपन्यास एक विस्तृत फलक पर रचा गया है | देश भक्ति के लिए अपने प्राणों की परवाह ना करने वाली एक तवायफ अजीजन का चरित्र वास्तव में काबिले तारीफ है | एक औरत होने के नाते अजीजन के चरित्र ने मुझे बेहद प्रभावित किया है | उसके दिल से जो आवाज निकलती है तो ऐसा लगता है मानो ------------
एक लोटा पानी और उसमे
समन्दर की चाहत
ये कैसा दिल है ,
जिन्दगी के चंद लम्हे
मुट्ठी में आसमाँ
ये कैसी चाहत है ,
छोटा सा गुलदस्ता
ढेर सारे सपने
ये क्या हम है ?
औरत का चाहना हर किसी के लिए नही होता है | अजीजन बेशक एक तवायफ है पर उसके भीतर एक औरत भी छुपी है और उसी औरत का जज्बा, शमशुद्दीन के लिए, चाँद को हथेलियों में छुपाने जैसा है | रिश्तों के अधूरेपन को वो अपने प्रेम की चाशनी में डुबोती है मानो ------------------
जिन्दगी की उदास राहों में
अचानक मिल जाना तुम्हारा
सख्त हथेलियों पे जैसे
शबनम का ठहर सा जाना
खुश्क गले में अटकते अटकते
गीला सा कुछ तिर जाना
कड़क धूप में जैसे
बादल का छा सा जाना
बैठक में मुजरा और पीछे के कमरे में आजादी के लिए हो रही मन्त्रणा ! इतना विरोधाभास और इसे एक सूत्र में पिरोती अजीजन मस्तानी हर तबके से सलाम पाने की हकदार है | आशा जी ने जहाँ एक तरफ अजीजन के पेशे की पीड़ा को जामा पहनाया है वही दूसरी तरफ उस पीड़ा में देश के लिए मर मिटने की भावना का बहुत ही प्रभावशाली ताना बाना बुना है | सच , इसका कोई सानी नही है |
वह कहती है '' पाने वाले को कुछ खोना भी पड़ता है , अलविदा ! ''इस खोये और पाए जाने के ब्योरो से परे आत्ममुग्धा की तरह जीते जीते कब वो आजादी की मुग्धा बन गई , इतिहास में छिटके हुए अवशेष इसके गवाह है | भारतीय इतिहास में मील का पत्थर बन गई अजीजन मस्तानी को पाठकों तक पहुचाने के लिए आशा जी को बहुत बहुत धन्यवाद |
Saturday, November 6, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Popular Posts
-
हिन्दी में आंचलिक औपन्यासिक परंपरा की सर्वश्रेष्ठ कृति “मैला आंचल” मनोज कुमार 1954 में प्रकाशित फणिश्वरनाथ ‘रेणु’ का “मैला आंचल” हिन्दी साह...
-
दोस्तों, अभी पिछले दिनों वामपंथ (विचलन) पर "हँस" के फ़रवरी, १९८९ अंक में प्रकाशित और "पाखी" के अगस्त २०१० अंक में पुनर...
-
कि सी भी इन्सान को जानने का सबसे आसान तरीका है उसकी कही, उसकी लिखी बातों को जानना, पढना और समझना। विशेष रूप से जब हम किसी ऐसे महापुरूष के बा...
-
अन्धेर नगरी पुस्तकें पढना मेरी हॉबी है। इसलिए जब ‘पुस्तकायन’ ब्लॉग पर नज़र पड़ी तो झट से इसका सदस्य बन गया। कई बार ऐसा होता है कि आप जब कोई ...
-
रचनाकार: महादेवी वर्मा प्रकाशक: लोकभारती प्रकाशन वर्ष: मार्च ०४ , २००४ भाषा: हिन्दी विषय: क...
-
नयी कविता के साथ एक समस्या है- इसे लिखने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही है और पढ़नेवाले कम से कमतर होते जा रहे हैं। ऐसे में एक युवा कवि एकदम अ...
-
वसंत पंचमी के अवसर पर महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" जी की एक प्रसिद्ध रचना ! -- संजय भास्कर
-
आप सभी को पुस्तकायन ब्लॉग की ओर से . ......... रंगों के पर्व होली की बहुत बहुत शुभकामनायें .. रंगों का ये उत्सव आप के जीवन में अपार खुश...
-
हिंदी दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें आइये आज प्रण करें के हम हिंदी को उसका सम्मान वापस दिलाएंगे ! ***************************...
-
यूँ तो यह समीक्षा शीघ्र ही किसी पत्रिका में आने वाली है। किस पत्रिका में यह मुझसे ना पूछें, क्योंकि जिसने यह समीक्षा लिखी उस पर इतना अधिकार...
रोचक पुस्तक, सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति। पुस्तक की समीक्षा इसे पढने की रुचि जगा गई।
ReplyDeleteअजीजन मस्तानी के बारे में और जानकारी खोजने की दृष्टि से मैं नेट पर सर्च कर रहा तो मैंने जाना कि उन पर एक लघु फिल्म भी बनी है। इसे कासिद ब्लाग वाले पंकज शुक्ल जी ने बनाया है। पंकज शुक्ल पत्रकार हैं।
ReplyDeleteराजवंत जी से भी अनुरोध है कि उपन्यास तथा आशा जी के बारे में थोड़ी और जानकारी यह हम लोगों के साथ बांटें।
अच्छी समीक्षा... सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDelete
ReplyDeleteराजेश उत्साही से सहमत,
राजवन्त जी का चुनाव निःसँदेह बेहतर है ।
इस कृति के प्रकाशक और उपलब्धता पर अधिक जानकारी की आवश्यकता है ।
समीक्षा पढकर तो किताब पढने की इच्छा बलवती हो गयी।
ReplyDeleteपुस्तक की समीक्षा अच्छी लगी।...धन्यवाद।
ReplyDeleteपुस्तक वाकई में बहुत सुन्दर होगी..लगता है गागर में सागर सी होगी.. समीक्षा काफी जानदार .. पुस्तक जरूर पढ़ी जाये... शुभकामना..
ReplyDeletesundar sameeksha!!!
ReplyDeletelooking forward to read the book sometime!!!
parichay hetu aabhar!
pustkayan ke aadrneey pathko
ReplyDeletesaddr namaskar
kisi pustak ki smiksha ke mere phle pryaas ko aap sbhi ne sraha , vishwaas maniye bhut khushi hui .aap sbhi kahriday se dhanywaad .
asha shrivastv ji ne apni shiksha allahabad se puri ki hai . samsamyik vishyon pr inki lekhni abadh roop se chli hai .inhe prgya sahity , mhadevi smman ,sarsvat smman , sahity shiromni smman se smmanit kiya gya hai . inke kai kahani sangrh, kai upnyas prkashit huye hai . bal sahity pr bhi inhone bhut likha hai .
ajijan mstani upanyas ' kitab mahal ' allahabad se prkashit hai . isme 178 prishth hai .
asha ji ka address evm mo. no is prkar hai ---
mrs. asha shrivastv
shree umesh chandr ji
54 a . p. sen road
lucknow
mo 9956951904
o5222635839
punhshch dhanywaad .
सुंदर प्रस्तुति. अजीजन मस्तानी जी से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
बहुत अच्छी समीक्षा ....कभी अवसर मिला तो यह पुस्तक ज़रूर पढूंगी
ReplyDeleteधन्यवाद राज ! आपने एक वीरांगना के चरित्र को ब्लॉग के पाठकों से रूबरू कराया ! वास्तव में आशाजी ने इनके जीवन के सभी पहलू को चित्र सहित उभारा है ,जो वीरता का संदेश देता है !आपको बधाई
ReplyDeleteApki samiksha bahut achhi lagi.Dil karata hai ki us pustak ko jald se jald padh dalun. Samiksha ka andaj kabile tarif hai.
ReplyDeleteआपकी समीक्षा ने पुस्तक के भाव-चित्र को बड़ी ही संजीदगी से बखूबी उभारा है ! पाठक समीक्षा पढ़ने के बाद स्वयं को पुस्तक पढ़ने से रोक नहीं पायेगा!
ReplyDelete-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...शुभकामनाएं..
ReplyDeletegazab ki hai dil se nikli hui aawaz.
ReplyDeleteaap sbhi ka sneh pakr bhut achchha mhsoos kr rhi hu . bhut bhut dhnyvaad .mera blog umeed nam se hai . samay nikal kr vha bhi aaye our mera marg nirdeshn kre . aabhar shit .
ReplyDeleteसुन्दर लेख.
ReplyDeleteमन अति उत्सुक हो गया इसे पढने को....
ReplyDeleteआभार.
nice post...great
ReplyDeleteइस महत्वपूर्ण उपन्यास के प्रकाशन पर लेखिका आशाजी को और पुस्तक के बारे में सुंदर समीक्षात्मक आलेख के लिए संजय जी आपको बहुत -बहुत बधाई .
ReplyDelete