आवाज़--
बहुत उदास होता हूँ
साँझ को
घर लौटते
परिंदों को देख कर
अपना घर याद आता है
खुली चोंचें याद आती है
जिनके लिए
मै चुग्गा चुगने का
वादा कर
एक दिन चला आया था -----------
जीवन जिया मैनें ----
उन लोगों की तरफ देख कर
नही जिया जीवन मैंने
जिन्होंने मेरे रास्तों मै
कांच बिखेर दिया
और मेरे लहू को
सुलगते खंजरों की
तासीर बताई
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सचमुच उन लोगों को देख कर
जियाजीवन मैंने
जिन्होंने इस जीवन का
अन्दर बाहर प्यार से भर डाला
गहन उदासी मै भी
जिनके प्यार ने
मनुष्य को जीने के काबिल कर डाला
उन लोगों को देख कर
जिया जीवन मैंने |
शब्दों का इन्तजार-------
शब्द जब मेरे पास नही होते
मै भी नही बुलाता उन्हें
दूर जाने देता हूँ
अदृश्य सीमाओं तक
उन्हें परिंदे बन कर
धीरे धीरे
अनंत आकाश मै
लुप्त होते देखता हूँ
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आयेंगे
मेरे कवि मन के आंगन मै
मरुस्थल बनी
मेरे मन की धरा पर
बरसेंगे रिमझिम
भर देंगे
सोंधी महक से मन
कही भी हों
शब्द चाहे
दूर
बहुत दूर
लेकिन फिर भी
शब्दों के इन्तजार में
भरा भरा रहता
अंत का खाली मन |
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Monday, December 20, 2010
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