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प्रकाशक: | लोकभारती प्रकाशन | |
वर्ष: | मार्च ०४, २००४ | |
भाषा: | हिन्दी | |
विषय: | कविता संग्रह | |
शैली | गीत | |
मूल्य | रु. 110 |
मैं विगत सप्ताह अपने बेटे की हिन्दी पाठ्य-पुस्तक में डा.महादेवी वर्मा जी की एक बडी ही सुन्दर कविता मधुर-मधुर मेरे दीपक जल पढा। वह अपनी वर्षान्त परीक्षा के लिए इस कविता के कुछ पदों के भावार्थ समझने में मेरी सहायता चाहता था।
इस कविता को पढने के उपरान्त मुझे यह तो ठीक-ठीक ज्ञात नहीं कि मैं उसको किस हद तक इस सुन्दर एवं अति रहस्यमयी आध्यात्मिक अर्थों वाली गूढ कविता का भावार्थ सफलतापूर्वक समझा पाया, किन्तु यह अवश्य है कि स्वयं मुझे इस कविता को पढने के उपरान्त विलक्षण आत्मिक जागृति व संतुष्टि की प्राप्ति हुई।
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! डा.महादेवी वर्मा की प्रतिनिधि कविताएँ में सबसे महत्वपूर्ण व सुन्दरतम् भाव वाली अद्भुत कविता है।वैसे महादेवी जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार का सम्मान उनके अनूठे काव्यसंग्रह व रहस्यवाद के सुन्दरतम् रचनाओं मे से एक यामा(1940) के लिए हेतु दिया गया किन्तु इसके अतिरिक्त भी उनकी अनेकोंनेक अद्भुत काव्यरचनाएँ, जैसे नीहार (1929),रश्मि (1932),नीरजा(1933),सांध्यगीत (1935),दीपशिखा (1942) ,प्रथम आयाम (1980) ,अग्निरेखा(1988) ,सप्तपर्णा इत्यादि हैं । इन काव्यसंकलनों में उनकी प्रतिनिधि कविताएँ- जैसे अधिकार , अश्रु यह पानी नहीं है , कौन तुम मेरे हृदय में ,क्या जलने की रीत ,जाग तुझको दूर जाना ,जीवन विरह का जलजात , धूप सा तन दीप सी मैं ,नीर भरी दुख की बदली,पूछता क्यों शेष कितनी रात ? ,मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! ,मैं अनंत पथ में लिखती जो ,मैं नीर भरी दुख की बदली! , रूपसि तेरा घन-केश-पाश , स्वप्न से किसने जगाया ? और हे चिर महान्! इत्यादि हमारे हिन्दी साहित्य की सुन्दरतम् रचनाओं में से एक मानी जाती रही हैं।
नीरजा काव्यसंकलन की प्रमुख कविता मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! तो अद्भुत भावपूर्ण कविता है। इसमें कवि अपने जीवन की तुलना दीपक से करती हैं, और सच कहें तो वे स्वयं को एक दीपक के स्वरूप में ही निरूपित कर लेती हैं।इस दीप रूपी जीव की आत्मा परमात्मा रूपी प्रियतम से मिलने हेतु तडप रही है।इसी लिए आत्मा के इस वियोग की तडपन व जलन की तुलना दीपक की निरंतर जलन व क्षयगति से की गयी है।
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल प्रियतम का पथ आलोकित कर! सौरभ फैला विपुल धूप बन मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन! दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित, तेरे जीवन का अणु गल-गल पुलक-पुलक मेरे दीपक जल! तारे शीतल कोमल नूतन माँग रहे तुझसे ज्वाला कण; विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं हाय, न जल पाया तुझमें मिल! सिहर-सिहर मेरे दीपक जल! | जलते नभ में देख असंख्यक स्नेह-हीन नित कितने दीपक जलमय सागर का उर जलता; विद्युत ले घिरता है बादल! विहँस-विहँस मेरे दीपक जल! द्रुम के अंग हरित कोमलतम ज्वाला को करते हृदयंगम वसुधा के जड़ अन्तर में भी बन्दी है तापों की हलचल; बिखर-बिखर मेरे दीपक जल! मेरे निस्वासों से द्रुततर, सुभग न तू बुझने का भय कर। मैं अंचल की ओट किये हूँ! अपनी मृदु पलकों से चंचल सहज-सहज मेरे दीपक जल! | सीमा ही लघुता का बन्धन है अनादि तू मत घड़ियाँ गिन मैं दृग के अक्षय कोषों से- तुझमें भरती हूँ आँसू-जल! सहज-सहज मेरे दीपक जल! तुम असीम तेरा प्रकाश चिर खेलेंगे नव खेल निरन्तर, तम के अणु-अणु में विद्युत-सा अमिट चित्र अंकित करता चल, सरल-सरल मेरे दीपक जल! तू जल-जल जितना होता क्षय; यह समीप आता छलनामय; मधुर मिलन में मिट जाना तू उसकी उज्जवल स्मित में घुल खिल! मदिर-मदिर मेरे दीपक जल! प्रियतम का पथ आलोकित कर! |
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! सहित नीरजा काव्यसंकलन की सभी कविताएँ अद्भुत व सुन्दरतम् आध्यात्मिक भावों से परिपूर्ण हैं। इस काव्यसंकलन के ज्ञान व आत्मदर्शन के आनंदसरोवर में एक डुबकी अवश्य लगायें।
मैँने भी पढी है।
ReplyDeleteपधारेँ http://bloggers-adda.blogspot.com
बहुत सुन्दर कुणाल जी। आमंत्रण हेतु आभार।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रवीण।
ReplyDeleteधन्यवाद ...
ReplyDeleteमहादेवी जी की कविताएं तो मन में बसी हुई हैं। मधुर-मधुर मेरे दीपक जल, तो प्रिय कविताओं में से एक हैं।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteमहादेवी जी को नमन...
आभार.
अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteपढ़ी थी यह कविता इंटर -मीडिएट साइंस में (१९६२-६३ )में शीर्षक देख मन ललचाया ,मैं दौड़ा दौड़ा आया ..बढ़िया प्रस्तुति .
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार।
आप सबका हार्दिक आभार।
ReplyDeletebahut sundar prastuti..aabhar!
ReplyDeleteधन्यवाद कविता।
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