Showing posts with label डॉ. अमर कुमार. Show all posts
Showing posts with label डॉ. अमर कुमार. Show all posts

Tuesday, April 12, 2011

औरत का कोई देश नहीं

AKKDNयह शीर्षक है तस्लीमा नसरीन की चर्चित किताब का ! अभिनन्दन का उद्योग-पर्व के बाद अपनी अस्वस्थता के चलते पुस्तकायन पर मेरा योगदान नहीं सँभव हुआ, इसी सँदर्भ में यह जिक्र कर देना प्रासँगिक रहेगा कि, यहाँ पर हम अपनी पढ़ी हुई किताबों की चर्चा करते हैं, उसके गुण-दोष की विवेचना इस आशय से करते हैं कि ऎसा पुस्तक परिचय हम अपने बँधुओं से साझा कर सकें.. न  कि उस तरह जैसा आशीष अनचिन्हार जी ने हमसे अपेक्षा की है ! आज जिक्र है मुक्त चिन्तन की नायिका तसलीमा नसरीन के लेख सँग्रह औरत का कोई देश नहीं का ,  मूल बाँग्ला से सुशील गुप्ता द्वारा अनुदित यह सँग्रह वाणी प्रकाशन द्वारा हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया गया है । लेखिका के अनुसार यह विभिन्न अख़बारों में उनके द्वारा लिखे गये कॉलमों के सँग्रह की पाँचवीं कड़ी है !
इसकी भूमिका में मोहतरमा यह कहती पायी जाती हैं कि देश का अर्थ यदि सुरक्षा है, देश का अर्थ यदि आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता । धरती पर कोई औरत आज़ाद नहीं है, धरती   पर कहीं कोई औरत सुरक्षित नहीं है । बकौल स्वयँ उनके जो तस्वीर नज़र आती है, वह आधी अधूरी है, इसलिये ( फिलहाल ) उन्होंने अँधेरे को थाम लिया है ।
उनकी सोच सही दिशा में हो सकती थी, यदि वह उन कारणों की पड़ताल को आगे बढ़ातीं, जिसे उन्हें रेखाँकित किया है..

Thursday, October 7, 2010

अभिनन्दन का उद्योग-पर्व

बाबा नागार्जुन की अप्रतिम व्यँग्य रचना ’ अभिनन्दन ’ पढ़ना अपने आपमें एक अनुभव है । साहित्यजगत विशेषकर हिन्दी साहित्यकारों के मध्य चलते घाल मेल और अभिनन्दन, सम्मानों के आँतरिक सत्य को बेरहमी और चुटीले ढँग से इस उपन्यास में उकेरते हैं, बाबा नागार्जुन । ऎसा नहीं है कि नागार्जुन हिन्दी-रचनाकारों के किसी असँतुष्ट घड़े से सम्बन्ध रखते रहे हों, और यह पुस्तक उनके असँतोष की कुँठा की उपज हो ।-Nagarjun साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत बाबा नागार्जुन ने सम्मान, अलँकरण की परवाह  कभी से न की !  श्री वैद्यनाथ मिश्र ( 1911-1998 ) छपासग्रस्त भी न थे,  लेखक के रूप में वह हिन्दी में नागार्जुन, मैथिली में यात्री और बाँग्ला में बैजनाथ के नाम को अमर कर गये ।  उनकी पहचान सदैव एक आवेगशील, प्रगतिशील रचनाकार की रहेगी, आम जनता से एक अभिजात्य दूरी बनाये रखने की अपेक्षा वह कभी और किसी बिन्दु पर सामाजिक मुक्ति-सँघर्ष में अपनी हिस्सेदारी से नहीं चूके ।


वाणी प्रकाशन को इसे छापने की अनुमति देते हुये  (उनकी अपनी हस्तलिपि में) उन्होंनें स्वयँ ही लिखा है, कि. Image0001अस्तु यहाँ प्रस्तुत है, उनके उपन्यास ’ अभिनन्दन ’ के  प्रथम अध्याय उद्योग-पर्व का आरँभिक डेढ़ पेज...

Popular Posts