Thursday, February 17, 2011

अब तो पथ यही है - दुष्यन्त कुमार

जिंदगी ने कर लिया स्वीकार,
अब तो पथ यही है।

अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है,
एक हलका सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है,
यह शिला पिघले न पिघले, रास्ता नम हो चला है,
क्यों करूँ आकाश की मनुहार ,
अब तो पथ यही है ।

क्या भरोसा, कांच का घट है, किसी दिन फूट जाए,
एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,
एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट जाए,
आज हर नक्षत्र है अनुदार,
अब तो पथ यही है।
यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है,
यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,
अब तो पथ यही है ।
साभार : कविताकोश
 

   दुष्यन्त कुमार

Saturday, February 12, 2011

बोधि पुस्‍तक पर्व यानी किताबों का खजाना : राजेश उत्‍साही


फरवरी के आरंभ में जयपुर जाना हुआ। यात्रा इस मायने में  यादगार रही कि वहां किताबों का एक खजाना हाथ लगा। खजाना है दस किताबों का एक सेट। सेट का मूल्‍य इतना कम है कि विश्‍वास नहीं होता है कि आज की तारीख में भी यह संभव है। पर इसे संभव बनाया है जयपुर के बोधि प्रकाशन के मायामृग जी ने। मायामृग स्‍वयं भी कवि हैं।

इस सेट को बोधि पुस्‍तक पर्व नाम दिया है। पहले सेट में चार कविता संग्रह हैं,तीन कहानी संग्रह और तीन किताबें क्रमश संस्‍मरण,डायरी और लेखों की हैं। कवि हैं नंद चतुर्वेदी,विजेन्‍द्र,चंद्रकांत देवताले और हेमंत शेष। सभी नई कविता के जाने-माने और स्‍थापित  हस्‍ताक्षर हैं। कहानीकार हैं महीपसिंह, प्रमोद कुमार शर्मा और सुरेन्‍द्र सुन्‍दरम्। महीपसिंह भी स्‍थापित कहानीकार हैं। शेष दो कहानीकार राजस्‍थान के सुपरिचित हस्‍ताक्षर   हैं।

Tuesday, February 8, 2011

वसंतपंचमी पर विशेष--निराला" जी की एक प्रसिद्ध रचना !

 वसंत पंचमी के अवसर पर महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" जी की एक प्रसिद्ध रचना !

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