Sunday, September 26, 2010

अन्धेर नगरी

अन्धेर नगरी

पुस्तकें पढना मेरी हॉबी है। इसलिए जब ‘पुस्तकायन’ ब्लॉग पर नज़र पड़ी तो झट से इसका सदस्य बन गया। कई बार ऐसा होता है कि आप जब कोई पुस्तक पढते हैं तो उसकी कई बातें लोगों से बांटने का मन करता है। आज (२६ सितंबर, २०१०) कोलकाता से दिल्ली की यात्रा के वक़्त पढ़ने के लिए साथ में एक ऐसी पुस्तक थी जिसकी कई बातें बांटने का मन अनायास बन गया। यह पुस्तक थी “अन्धेर नगरी” एक लोककथा तो आपने सुनी ही होगी। ‘अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा’। प्रस्तुत पुस्तक इसी लोककथा पर आधारित है।

Monday, September 13, 2010

एक करोड की बोतल

इस उपन्‍यास के माध्‍यम से हम 'एक गधे की आत्‍मकथा' लिखने वाले, उर्दू कथा साहित्‍य में अपनी अनूठी रचनाशीलता के लिए बहुचर्चित उपन्‍यासकार, प्रगतिशील और य‍थार्थवादी नजरिए से लिखे जानेवाले साहित्‍य के प्रमुख पक्षधरों में से एक, कृष्‍नचंदर के लेखन से परिचित हुए। (पुस्‍तक के परिचय से)

इस पुस्‍तक का पेपरबैक संस्‍करण जो कि मूल पुस्‍तक की अविकल प्रस्‍तुति होने का दावा करता है, कहीं रास्‍ते में किसी स्‍टेशन से खरीदी गई थी। 

उपन्‍यास मुम्‍बई नगरिया की दो बिल्‍कुल धुर असमान जीवन स्‍तर का बहुत ही खूबसूरती से चित्रण करता है। कथा की नायिका झुग्‍गी बस्‍ती की गरीबी से अचनाक नाटकीय ढंग से एक करोडपति आदमी की बेटी की समस्‍त सुविधाऍं और वसीयत पा जाती है। यही कहानी का प्रस्‍थान बिंदु है। 

Thursday, September 9, 2010

"...पूर्ण योगाभ्यास..इन्द्रदेव यति" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

       आर्य राष्ट्र कार्यालय, गुरूकुल शाही, जिला-पीलीभीत से प्रकाशित इस पुस्तक का नाम है- "ब्रह्मयज्ञ"।
       इस पुस्तक के लेखक हैं आर्य जगत के मूर्धन्य संयासी परम श्रद्धेय स्वामी इन्द्रदेव यति! स्वामी जी की आयु इस समय लगभग 105 वर्ष की है और ये अपने सारे दैनिक कार्य स्वयं करते हैं!
       

Thursday, September 2, 2010

पृथ्वी पर एक जगह - शिरीष कुमार मौर्य

नयी कविता के साथ एक समस्या है- इसे लिखने वालों की भीड़ बढ़ती जा रही है और पढ़नेवाले कम से कमतर होते जा रहे हैं। ऐसे में एक युवा कवि एकदम अलग-थलग खड़े नजर आते हैं- शिरीष कुमार मौर्य, नयी कविता का एक सशक्त हस्ताक्षर जो अपने लिखे से भी उतना ही हैरान करते हैं जितना अपने पढ़े से।

बात सन 2004 की है जब मैंने पहली बार शिरीष जी का नाम सुना था। उनका नाम प्रथम अंकुर मिश्र स्मृति कविता-सम्मान के लिये चुना गया था। अंकुर मेरा ममेरा भाई था, जिसके असमय दुखद अवसान के पश्चात उसकी स्मृति में इस सम्मान की


शुरूआत की गयी थी। वो चर्चा फिर कभी। ...तब से शिरीष जी की कविताओं के साथ कुछ ऐसा रिश्ता जुड़ा कि वो दिन-ब-दिन प्रगाढ़ होता गया और उनकी कविताओं ने कभी कोई अवसर दिया ही नहीं कि इस रिश्ते में तनिक भी खटास आये। पिछले साल उनके दूसरे कविता-संकलन "पृथ्वी पर एक जगह" को जब प्रतिष्ठित लक्ष्मण प्रसाद मंडलोई सम्मान दिया गया तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा। हम आज बात करेंगे इसी संकलन की...

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