Monday, November 29, 2010

अंतहीन दौड़ - जहाँ तक मैंने समझा

अंतहीन दौड़

पंजाब के सुविख्यात कवि डा . अमरजीत कोंके वो साहित्य प्रेमी है जिन्हों ने बहुत ही थोड़े  समय में अपने अथक प्रयास और  सशक्त लेखनी से पंजाबी साहित्य के साथ साथ हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है | भावनाएं किसी  भाषा किसी सरहद की मोहताज नही होती है | अमरजीत जी की रचना धर्मिता इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है |
२७ अगस्त १९६४ में जन्मे डा . अमरजीत कोंके ने पंजाबी साहित्य में स्नातकोतर की शिक्षा के उपरांत पी . एच . ड़ी प्राप्त की और वर्तमान में लेक्चरार के पद पर नियुक्त हैं |


इन्होने पंजाबी में ' दायरियाँ दी कब्र चों ','निर्वाण दी तलाश विच ',' द्वंद कथा' , 'यकीन' ,'शब्द रहेनगे कोल' , 'स्मृतियाँ दी लालटेन 'आदि काव्य पुस्तकें लिखीं वही दूसरी तरफ हिंदी में 'मुट्ठी भर रौशनी', 'अँधेरे में आवाज' और 'अंतहीन दौड़' नामक काव्य संग्रह की रचना की . | डा . कोंके ने हिंदी के कई कवियों की रचनाओ का पंजाबी में तथा कई पंजाबी रचनाओ का हिंदी में अनुवाद कर के श्रेष्ठ अनुवादको की श्रेणी में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज की है|


' मुट्ठी भर रौशनी 'के लिए भाषा विभाग पंजाब से सर्वोतम हिंदी पुरस्कार ,'शब्द रहेनगे कोल 'के लिए मोहन सिंह माहिर पुरस्कार ,सम्पूर्ण काव्य लेखन के लिए इयापा कैनेडा सम्मान के अतिरिक्त इन्हें मानवीय श्रोत एवं विकास मंत्रालय , भारत सरकार की तरफ से १९९९-२००० के रिसर्च फैलोशिप से भी सम्मानित किया गया है | डा . कोंके की  कविताओं का भारत की कई भाषाओँ में अनुवाद भी हुआ है | 

फ़िलहाल पंजाबी की सुप्रसिद्ध त्रैमासिक पत्रिका '' प्रतिमान '' के सम्पादन का दायित्व सफलता पूर्वक निभा रहे है | प्रतीक पब्लिकेशन पटियाला से प्रकाशित १११ पृष्ठों में समाहित ''अंतहीन दौड़ ''इनका  बहुप्रसिद्ध काव्य संकलन है जिसमे ४२ अनूठी कविताएँ है | विषय की विविधता , उद्दात भावनाएं ,करूणा, प्रेम , इंतजार , विछोह , समर्पण , जिजीविषा , उद्वेग और संघर्ष  कुल मिला कर भावनाओं का चरमोत्कर्ष इस काव्य संग्रह के पन्नों पर देखा पढ़ा और मनन किया जा सकता है | 

काव्य संग्रह के पहले पन्ने पर उनकी आत्माभिव्यक्ति ''अपनी भीतर ठहर गई उस ख़ामोशी  के नाम जो कभी टूटती ही नही ''में सम्वेदनाएँ पाठकों से एक अदृश्य सम्वाद कायम करने में सक्षम हुई है जो किसी भी रचनाकार के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होती है | 

इस काव्य संग्रह में जो कविताएँ है उस पर मैंने कुछ शब्दों में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है जैसे ----

शब्दों का इंतजार -शब्द कवि का साथ पाकर अर्थ ग्रहण करते है |पक्षी ने जहाज को छोड़ कर कहाँ जाना है भला |सुंदर भावाभिव्यक्ति |

घर का अँधेरा -न चाहते हुए भी अपनी झोली में आई आत्मग्लानि का मूर्त रूप लगी ये कविता |

एन आधी रात -
यादें किसी सहारे की मोहताज नही 
ये तो बस आती है और आती ही चली जाती है 
कोई दरवाजा कोई खिड़की कोई सांकल  कोई हथकड़ी 
इन्हे आने से ना रोक पाई है 
ये तो बस आती है और आती ही चली जाती है |

लालटेन -स्मृतियों की बाती और लालटेन की बाती दोनों में एक समानता है |थामने वाले हाथ दोनों को ही कम या ज्यादा करने में सक्षम है |

जीवन जिया मैंने -प्यार और सहानुभूति ,स्नेह और संरक्षण का जज्बा हर काट का जवाब है इसे बहुत ही खूबसूरती से दर्शाया गया है जीवन जियामैंने कविता में | 

क्लायिदियोस्कोप -अन्तर्द्वन्द |

अद्वभुत कला -कुछ  स्मृतियाँ है जो उदगार बन कर कविताओं में बार बार सामने आती है |अच्छा है कवि उन स्मृतियों से दुखी और निराश होने की बजाय उनसे लड़ना जानता है |

खोये हुए रंग -अतीत का संताप मनाते रहने से कही बेहतर है आगत का स्वागत करना |एकबार फिर आशावाद कविता में झलका है |

आवाज - आवाज में राहत की आवाज सुनाई दी

बहुत दूर - बहुत दूर एक संदेश परक कविता लगी |अंतहीन लड़ाई से कही बेहतर है नई डगर की तलाश में निकल पड़ना |इसे पलायनवादी कविता न   कह कर उस जमीं की तलाश में निकल पड़ना कहें जहाँ पैर मजबूती से टिका सकें ,स्व का सृजन कर सकें तो ऐसा निकल जाना ही बेहतर है  | कहा जा सकता है यहाँ कवि भाग नही आया बल्कि चला आया है |

अंतहीन दौड़ - अंतहीन दौड़ जीवन का आइना है  जिसे बहुत ही सम्वेदनात्मक ढंग से पन्नों पे उतारा गया है |  
इस सार्थक कविता के लिए बधाई |आज 
अजनबी मनुष्य'' - वक्त अचानक 
                                         क्या हादसा कर गया '' 
यही वो बिंदु है जहाँ से जिन्दगी करवट लेती है इसीलिए मनुष्य को परिस्थिति जन्य उत्त्पन्न भाव का मूर्त रूप बनना पड़ता है |

उत्तर आधुनिक आलोचक -उत्तर आधुनिक आलोचक की आलोचना वह भी व्यंग्यात्मक शैली में |बहुत ही जबर्दस्त प्रस्तुति |

देख लो भले -परिश्रम के पसीने से उगे फूलों का रंग हमेशा शोख होता है और जो सपने देखते है वही फूलों की क्यारी बना सकते है |सुंदर संदेश |

कवि कविता - रचनाधर्मिता के लिए वक्त की कोई पाबंदी नही है इसीलिए जब सारी दुनिया सोती है तब भी रचनाकार जग रहा होता है |

स्पर्श-स्पर्श खुदाई है |

मिलन - आकाश का डगमगाना, पानी का छटपटाना,  समय का खनखनाना, प्रकृति का मानवीकरन कविता के मर्म के साथ साथ अपनी उद्दात्तता ,अपने शिखर पर है |

पता नही - -पता नही में भावनाओं की विराटता असीम है
  
शिला - शिला रूह की आवाज है |

भिन्नता - हर सहज रहने वाली बीवी का शौहर उतना ही असहज और बेचैन होता है जितना की इस कविता का पुरुष पात्र | नितांत अनुभव की बात है  |

अंतर युद्ध - जब ना चाह कर भी चाहना जिन्दगी की जरूरत बन जाये तो कशमकश नफरत और मुहब्बत बन कर आँखों से टपकती है जिसकी तासीर ही बेचैन करने के लिए काफी होती है |

फिर भी - ये कविता कुछ भी पास न होते हुए भी कशिश की जकडन को बहुत ही खूबसूरती से बयाँ करती है |

सपने नही मरते - कांच के टुकड़ों की फसल ! आत्माभिव्यक्ति के लिए ऐसे रूपक का और इतना सटीक इस्तेमाल पहले कभी नजरों केसामने से नही गुजरा | 

मछलियाँ - इश्क उम्र की बंदिश नही मानता | वक्त है की कभी नही ठहरता ऐसे में वक्त को लपक के पकड़ने की कोशिश बेमानी हो जाती है | जिन्दगी एकुयेरियम की मछलियाँ हो जाती है |

काश - काश एक आवाज है | 

२७,अगस्त - जन्मदिन मुबारक हो | कविता नितांत व्यक्तिगत अनुभव है | 

प्यास - प्यास की प्रकृति ही है प्यासा रह जाना | चाहे उसे किसी भी किस्म की तरलता से सराबोर कर दो | 

वह , कविता और मैं - बेशक अपनी बात को  कहने के लिए किसी सहारे की कोई जरूरत नही मगर खुद से मुखातिब होने के लिए कोई  ना कोई बहाना तो जायज है | 

मै तुम्हारे पास नही होता - '' मन के ठीक भीतर वह कौन सी जगह है 
जो बिलकुल खुश्क रहती है 
जो पानी की बूंद से भी डरती है '' ...........सेल्फ कांशस  | 

हाथों में मचलता वर्तमान - एक व्यवहारिक कविता है जिसमे भूतो  न  भविष्यत का सिद्धांत लागु होता है वहाँ सिर्फ और सिर्फ वर्तमान  है | 

तुम्हारी देह जितना - तपिश अनंत है | इसकी कोई थाह नही | 

वर्षा - यहाँ मैं आपसे सहमत नही हूँ | होती है वर्षा जब अपनी जिन्दगी के हर छुए अनछुए पहलुओं का अवलोकन एक रचनाकार करता है तो भावनाओं की वर्षा होती है ए \ ' अंतहीन दौड़ 'इसका जीता जगता उदाहरण है | 
फिर मिलें - अधूरी ख्वाहिशों के प्रति उद्दात निवेदन | 

कवि - कवि धर्म का निर्वाह | 

कमीज - अतीत को वर्तमान में जीने की पुरजोर कोशिश 

अपने घर में - घर तो घर ही होता है, दुनिया की कोई ताकत उसकी जगह नही ले सकती| नजरिया मायने रखता है कि उसमें हम सुख की क्यारी लगायें या दुःख के बीज पनपायें |

अग्नि - अग्नि की प्रकृति है जलनाऔर जलाना |  | कही ये जल कर चारों तरफ रौशनी फैलाती है कही ये जल कर अगले को जला कर भस्म कर देती है | रूप चाहे कोई हो प्रकृति वही है जलना और जलाना |

पल - सुख के पल के लिए फिसलती  रेत ,पारे की चुटकी , फिसलती जाती मछलियाँ जैसे उपमान और दुःख के लिए जिस्म में खंजर घुसता और उसकी छील देने वाली वेदना ,बहुत ही प्रभावशाली कल्पना | सुख की उड़ान को पकड़ना जितना कठिन है उतना ही कठिन है दुःख के जहरीले तीर को घुपे सीने से बाहर निकलना |

धीरे धीरे - जिन्दगी के छुए अनछुए ,जिए अनजिए तमाम पलों का सजीव चिठ्ठा है | एक सिकुडन सी तारी होने लगती है और जिन्दगी बेबसी जान पडती है | 

बस में कवि -बस में किसी से कोई सरोकार नही तो भी परिस्तिथि जन्य शब्दों को चुन कर कविता लिख डाली | कवि धर्म का निर्वाह तो हुआ ही ना  | 
गाँव बिक रहा है -विवशताओं को बताना और इतने विस्तृत फलक पर बताना, झकझोर के मृत सम्वेदनाओं को जगाना ,धरोहर को सम्भालने की ताब जगाना ,रचनाकार होते हुए इतना तो नही बल्कि बहुत बहुत किया है |गाँव मिट्टी माहौल घटनाएँ पात्र का चित्रण इतना सजीव है कि मानो सामने कोई फिल्म चल रही है |  गोद का निग्घाप्न सम्वेदनाओं की गर्माहट है | कुए के पास सम्बन्धो की पूरी दुनिया बसती  है |दादी माँ और उनकी सन्दूकची और उसके प्रति उनका अनुराग ,दादा की झक सफेद कमीज ,गाव की बैठक ,उसमे बुने सपने और उन सपनों का तार तार होना और उन लहुलुहान जख्मों को कविता में भी सम्भाल कर रखा जा सकता है निःसंदेह निहायत इमानदार रचनाधर्मिता | 

हम यही रहेंगे -अपनी जन्मभूमि के प्रति एकनिष्ठ रागात्मकता को दर्शाती और पाठकों को प्रेरित करती पुनः एक सफल प्रस्तुति | 
साधुवाद ! 

अंतहीन दौड़ 

लेखक --डा . अमरजीत कोंके 

पुस्तक मूल्य --१२० 
मो . न . ०९८१४२३१६९८ 

17 comments:

  1. कौंके जी के बारे मे विस्तार से जान कर बहुत अच्छा लगा। उन्हें शुभकामनायें । आपका धन्यवाद।

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  2. सुन्दर लेखक समीक्षा।

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  3. बहुत सुन्दर समीक्षा की है………………बधाई।

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  4. सुदर जानकारी के लिए आभार .

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  5. डा. अमरजीत जी के कृतित्व एवं व्यक्तित्व के बारे में अच्छी जानकारी मिली !
    धन्यवाद !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  6. उपयोगी जानकारी के लिए आभार....

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  7. Suchnaprak janakari ke liye dhanyavad. Plz. visit my new post.

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  8. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई ......

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  9. सुन्दर प्रस्तुति
    बहुत - बहुत शुभकामना

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  10. डा.अमरजीत के बारे में अच्छी जानकारी

    अति सुन्दर ,मेरी शुभकामनाएं है

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  11. आप मेरे ब्लाग "एक्टिवे लाइफ" पर पधारे के लिए दिल से शुक्रिया

    आपका ब्लाग "पुस्‍तकायन" का प्रयास अच्छा है मैं आपके ब्लाग को फालो कर रहा हूँ । आप भी कृपया मेरे ब्लाग "एक्टिवे लाइफ" को फालो करें. धन्यवाद...

    http://sawaisinghrajprohit.blogspot.com/

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  12. डा० अमरजीत जी के बारे में अच्छी जानकारी ..और पुस्तक कि अच्छी विवेचना ...आभार ...

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  13. राजवंत जी आपका प्रयास अच्‍छा है। पर बेहतर होता कि आप कवि की कुछ कविताओं की पंक्तियां भी देतीं । क्‍योंकि यहां केवल आप कवि की कविता की समीक्षा ही दे रही हैं उससे कवि की कविता कौशल के बारे में कुछ भी पता नहीं चलता है।

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  14. umda lekhen...
    mere blog par bhi sawagat hai..
    Lyrics Mantra
    thankyou

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  15. aap sbhi ka bhut bhut aabhar ki aapne smeeksha pasand ki . rajesh ji aapka khna bilkul vajib hai our mai ye bhool sudhar jroor krna chahungi . aise hi margdrshn krte rhiyega .
    dhnywaad .

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  16. meri agli post me konke ji ki kuchh behtreen rchnayen hai .

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  17. meri agli post me konke ji ki kuchh behtreen rchnayen di ja rhi hai .

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