Saturday, June 16, 2012

पुस्तक परिचय .... मेरे गीत / गीतकार -- सतीश सक्सेना



कुछ दिन पूर्व  सतीश सक्सेना जी के सौजन्य से मुझे उनकी पुस्तक  " मेरे गीत "  मिली  और मुझे उसे गहनता से पढ़ने का अवसर भी मिल गया । सतीश जी ब्लॉग जगत की ऐसी शख्सियत हैं जो परिचय की मोहताज नहीं है ।  आज  अधिकांश  रूप से जब छंदमुक्त रचनाएँ लिखी जा रही हैं उस समय उनके लिखे भावपूर्ण गीत मन को बहुत सुकून देते हैं । उनके गीतों और भावों से परिचय तो  उनके ब्लॉग  पर होता रहा है  लेकिन पुस्तक के रूप में  उनके गीतों को  पढ़ना  एक सुखद अनुभव रहा । पुस्तक पढ़ते हुये यह तो निश्चय ही  पता चल गया कि  सतीश जी एक बहुत भावुक और कोमल हृदय के इंसान हैं । 
बचपन में ही माँ  को खो देने पर भी जो छवि माँ  की मन में अंकित  की है  उसकी एक झलक उनकी माँ को समर्पित   उनके गीतों में मिलती है --
हम जी न सकेंगे दुनियाँ में 
माँ जन्में कोख  तुम्हारी से 
जो दूध  पिलाया  बचपन में 
यह शक्ति  उसी से पायी है 
जबसे तेरा आँचल छूटा, हम हँसना  अम्मा भूल गए 
हम अब भी आँसू भरे , तुझे  टकटकी  लगाए बैठे हैं । 

या फिर  माँ की याद में एक काल्पनिक चित्रण कर रहे हैं ---

सुबह सवेरे  बड़े जतन से 
वे मुझको नहलाती  होंगी 
नज़र न लग जाये, बेटे को 
काला तिलक लगाती होंगी 
चूड़ी, कंगन और सहेली , उनको कहाँ लुभाती होगी ? 
बड़ी बड़ी  आँखों की पलकें , मुझको ही सहलाती होंगी । 

ईश्वर के प्रति भी अगाध श्रद्धा भाव रखते हुये  सारी प्रकृति  के रचयिता को याद करते हुये कह उठते हैं --

कल - कल , छल- छल जलधार 
बहे , ऊंचे शैलों की चोटी से 
आकाश चूमते वृक्ष  लदे
हैं , रंग बिरंगे  फूलों से 
हर बार रंगों की चादर से , ढक  जाने वाला कौन ?
धरा को बार बार  रंगीन बना कर जाने वाला कौन ? 

इनके गीतों में पारिवारिक भावना बहुत प्रबलता से  महसूस होती है ..... 

कितना दर्द दिया अपनों को 
जिनसे हमने चलना सीखा 
कितनी चोट लगाई  उनको 
जिनसे हमने हँसना सीखा 
स्नेहिल आँखों के आँसू , कभी नहीं जग को दिख पाये 
इस होली पर , घर में आ कर , कुछ गुलाब के फूल खिला दें । 

वृद्ध  होते पिता के मनोभावों को जिस तरह गीत में उकेरा है उससे जहां मन भीगता है वहीं प्रेरणा भी मिलती है --

सारा जीवन कटा भागते 
तुमको नर्म बिछौना लाते 
नींद तुम्हारी न खुल जाये 
पंखा झलते थे सिरहाने 
आज तुम्हारे कटु वचनों से ,मन कुछ डांवाडोल हुआ है 
अब लगता तेरे बिन मुझको , चलने का अभ्यास चाहिए । 

सामाजिक सरोकारों को भी गीतकार नहीं भूला है ।  उनके गीत की ये  पंक्तियाँ  आपसी भेद भाव भुला  देने के लिए काफी हैं ---

चल उठा कलम  कुछ ऐसा लिख 
जिससे घर का सम्मान बढ़े 
कुछ कागज काले कर ऐसे 
जिससे आपस में प्यार बढ़े 
रहमत चाचा के कदमों में , बैठे पाएँ घनश्याम अगर ,
तो रक्त पिपासु दरिंदों को , नरसिंह  बहुत मिल जाएँगे । 

एक ओर  जहां धर्म के ठेकेदारों  पर  भी  गीतकार की कलम चली है  वहीं दलित वर्ग के शोषण को भी उजागर किया है ---

बीसवीं  सदी में पले  बढ़े 
ओ धर्म के ठेकेदारों  तुम 
मंदिर के द्वारे खड़े हुये 
उन मासूमों की बात सुनो 
बचपन से  इनको गाली दे , क्या बीज डालते हो भारी 
इन फूलों को अपमानित कर क्यों लोग मानते दीवाली ? 

******************************
वंचित रखा पीढ़ियों इन्हें 
बाज़ार हाट  दुकानों से 
सब्जी , फल , दूध , अन्न अथवा 
मीठा खरीद कर खाने से 
हर जगह सामने आता था , अभिमान सवर्णों का आगे 
मिथ्या अभिमानों को लेकर  क्यों लोग मनाते दिवाली । 

सतीश जी के सभी गीत भावप्रबल हैं । इस पुस्तक में यूं तो सभी गीत  सुंदर और कोमल भावों के एहसास को सँजोये हुये हैं  लेकिन सबसे ज्यादा मुझे जिस गीत ने  प्रभावित  किया है वह है --- पिता का खत पुत्री को 
इस गीत में गीतकार हर उस पिता की भावनाओं को कह रहा है जिसकी बेटी ब्याह कर पराए घर को अपनाने जा रही है .... उस पराए घर को अपना बनाने की सीख देता यह गीत बहुत सुंदर बन पड़ा है -

मूल मंत्र सिखलाता हूँ मैं 
याद  लाडली रखना इसको 
यदि तुमको कुछ पाना हो 
देना पहले सीखो पुत्री 
कर आदर सम्मान बड़ों का , गरिमामयी तुम्ही होओगी 
पहल करोगी अगर नंदनी , घर की रानी तुम्ही रहोगी ।
*******************
कार्य  करो संकल्प उठा कर 
हो कल्याण सदा निज घर का 
स्व-अभिमानी बन कर रहना 
पर अभिमान न होने पाये 
दृढ़ विश्वास हृदय में ले कर कार्य करोगी, सफल रहोगी 
पहल करोगी अगर नंदनी .....

पुस्तक में एक - दो जगह कुछ वर्तनी अशुद्धि दिखाई दी  लेकिन सुंदर गीतों के आगे वो नगण्य  ही है .... जैसे --

पृष्ठ संख्या - 25 पर 
बरसों मन में गुस्सा बोयी 
ईर्ष्या ने, फैलाये बाज़ू 

गुस्सा शब्द पुल्लिंग होने के कारण बोयी के स्थान पर बोया  आना चाहिए था ।

कुछ टंकण अशुद्धियाँ भी दिखीं  जैसे 
पृष्ठ संख्या -56 
दवे हुये जो बरसों से थे .....
दवे  की जगह दबे  होना चाहिए था ...
इसी पृष्ठ पर --
द्रष्टिभर के स्थान पर  दृष्टिभर  सही रहता ।

एक संशोधन की आवश्यकता थी ,  शायद इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया --- पृष्ठ संख्या 49 पर जो गीत है वही पृष्ठ संख्या 59 पर भी है । बस गीत का शीर्षक अलग अलग है ---ज़ख़्मों को सहलाना क्या  / कैसे समझाऊँ मैं तुमको पीड़ा का सुख क्या होता है । 

पुस्तक की बाह्य साज सज्जा  सुंदर है ,छपाई स्पष्ट  है .... हर पृष्ठ पर सौंदर्य  बढ़ाने हेतु  किनारा ( बौर्डर ) बनाया गया है । उसे देख मुझे ऐसा लगा कि जैसे गीतों ने अपनी उन्मुक्तता  खो दी है ..... भावनाओं को जैसे बांधने का प्रयास किया गया हो ...यह मेरी अपनी सोच है ...इससे गीतों के रस और भावनाओं पर कोई असर  नहीं पड़ने वाला .... 

कुल मिला कर  आज  के परिपेक्ष्य  में "  मेरे गीत " पुस्तक नि: संदेह पाठक को भावनात्मक रूप से बांधने मे सक्षम है ।इस पुस्तक के गीत कार  सतीश सक्सेना जी को  मेरी हार्दिक शुभकामनायें । 

पुस्तक  का नाम ----    मेरे गीत 
गीतकार -----             सतीश सक्सेना 
मूल्य  -----------          199 / 
आई एस बी एन --        978-93-82009-14-6
प्रकाशन -                ज्योतिपर्व  प्रकाशन 






9 comments:

  1. बारीकी से की गई बहुत बढ़िया समीक्षा ......
    सतीश जी और संगीता जी को बधाई एवम शुभकामनायें....!

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  2. सतीश सक्सेना जी की, ’ मेरे गीत’ की समीक्षा भली बन पडी है,अभार

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  3. बहुत अच्छी समीक्षा की गई है। इससे पुस्तक के बारे में बेहतर जानकारी हुई ही, भाई सतीश जी कितने संवेदनशील हैं और सहज है, उनकी रचनाओं झलक भर से आसानी से समझा जा सकता है।
    शुभकामनाएं

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  4. bahut acchi samiksha mere geet ke .....

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  5. कल ही मेरे गीत का के beech एक bhavy समारोह में लोकार्पण हुआ है . दिल्ली और आस पास के बहुत से ब्लॉगर्स पुस्तक का विमोचन हुआ . सतीश जी को बधाई और आपको सुन्दर समीक्षा के liye sadhuvad.

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  6. पुस्तकायन में छापने का पता ही नहीं चला ...
    आपके स्नेह के लिए आभार !

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  7. सुंदर प्रस्तुति ।

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  8. आपके माध्‍यम से सतीशजी को बधाई। सतीश जी एक अच्‍छे गीतकार है उन्‍हें गीतों के लिए ही कार्य करना चाहिए।

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